Tuesday, June 20, 2017

अलविदा

इक आह सी निकली और सिसकी में सीमट गई
खुदसे बेरूखी, खुदी से बंदगी
सोचा न था
अरमानो के परिंदो ने, पँख बिना दम तोड़ देंगे
कुछ साज़ फुरसत के लम्हों के बिखरेंगे
आईना ढूंढ़ती हूँ  कांच के कुछ शीशो में
जाना न था
बेख़ौफ़ सी ज़िन्दगी शोलो में लिपटेंगे
कुछ यूं ही जूनून सी हैं
ज़िन्दगी जी भर के जीने में
कम्बख़्त राज़ अब यह जाना
बड़ा सुकून सी हैं,मौत के सीने में
न कोई गम है, न  गिले शिकवा
अब आखरी घड़ी में लेंगे अलविदा



No comments:

Post a Comment