जब में अकेली होती हूँ
खुदको और करीब पाती हूँ
अँधेरों के कमज़ोर घड़ी में ही
खुद को ढूँढ़ लेती हूँ
रिश्तो के दायरे से परे
अपनी शक्शियत को खरा पाती हूँ
मैं ही अपनी एक ऐसा हमसफ़र हूँ
जो उम्र ढलने के साथ अपनी बंदगी नहीं बदलती
खुद से नज़र मिला ले ऐ दोस्त
ज़िन्दगी क्या ख़ुदा भी मिल जाएगी!
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