Wednesday, November 2, 2011

मिष्टी

वाह मिष्टी!
तुम कितनी नज़ाकत से
अपने आप को बयान कर पाती हो
तुम्हारी हंसी की खिलखिलाहट जैसे गूँज रही हो
या फिर सिसकता मन रूह को छु रही हो
तुम्हारा अल्हड़पन इस अदा से हमे बाँध रही हो
जैसे कई जन्मो से हम तुम मीत रहे हो
तभी तो आज भी तुम्हारी हर बात
मेरे याद को ताज़ा कर रही हो

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