Friday, January 23, 2015

अंत नहीं अनंत हैं हम



कई बार यह ज़हन में आया हैं
कि हम कभी खुशियों के लहरों में
डुबकियाँ लगाते हुए झूमते
तो कभी उसी समुन्दर के बाढ़ से
हम्हारे गॉव घर बर्बाद होने पर
रोते बिलखते मायूसी के
आँधियों से जूझते

क्या यह ही वह घड़ी हैं
जो हम्हे आगाह करती हैं
कि वक़्त कभी ठहरता नहीं
ज़िन्दगी के दो पहलू से
पहचान कराती हैं

और इन्ही लहरों की तरह
छोटी छोटी खुशियों से
चट्टान जैसी ज़िन्दगी में
अपनी सुन्हेरी छाप छोड़ जायेंगे !
अंत नहीं अनंत हैं हम
इस संसार में समा जायेंगे !

No comments:

Post a Comment