Thursday, March 25, 2021

रूहानियत की वफा

 चन्न घड़ीया‌ॅ मांगी थी

और कोई बात नहीं 

न कुछ कहने की गुन्जाईश 

न ही कुछ सुनने की ख्वाहिश



शायद ही कोई अल्फाज़ हो

इस ज़स्बे को बयान करने की

ताउम्र लग जाएगी यकिन दिलाने को

मरते तलक ज़ुबान पे रह जाएगी

एक ऐसी एहसास है वह



पता मुझको भी नहीं 

जाने कौन सी अफवाह हैं

दुनिया कसे ताने

युहींं  बदनाम हो चले हम 


बस इतना सा गुमान है

वाकई  गुनहगार है हम

बड़े शिद्दत से बसाई है 

तासीर जन्नत सी पाई है

अब न कोई शिकवा है

न ही कोई गम

थोड़ी सी मुझमें बाकी है

रूहानियत की वफा

हो न पाएंगी जो कभी कम










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