श्री लीला
सृष्टी के कण कण मे जाग उठी आनंद लहरी मेला
जब प्रभु स्वयं रचाएँ अपनी अंतहीन अनमोल लीला
हर रूप में हरी मेरे , कभी श्री श्री सा गुरु मेरे
मधुर धुन में लहराके, खुद ही ले चले रथ को सवार के
जीवन के हर डगर पे गुरुदेव ने मार्ग दर्शन कराया
हरी के नाम से जीवन को प्रफुल्ल उत्साह सा सवारां
ज्ञान सागर के प्याले से अमृत रस चखाया
श्री चरणों के पावन स्पर्श से अज्ञानता के पत्थरों को
प्रेमरूपी फूलों से पिघलाया
हरी गुण गान में रत भक्त जन भक्ति रस में डूबे
झूमते हुए परम आनंद के गुलाल से आकाश में रंग बिखेरते हुए
शून्यता को पूर्णता से भरते हुए का अनुभव लिए
प्रभु केअपार कृपा के महिमा का मनमोहक दृश्य के साक्षी बने
जो गुरु कृपा के सौभाग्य को प्राप्त कर पाएँ
उनका जीवन आज़ाद पंछी सा खुली आसमान में उड़ान ले पाएँ
श्री प्रभु की अलौकिक लीला अनमोल हैं
यह जीवन उनके श्री चरणों में समर्पण हैं
Credit: Painting by Artist Sudipto Dey
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