Sunday, January 30, 2011

चाह

दुनिया का मानना है
चाह एक नशा है
जीने की वज़ह है

दौलत का, रुथबे का
अपनों का खुशियों का
पा लेने का मज़ा है

फिर भी एक मुकाम है
जहां इन्सान हैरान है
पड़ेशान है

जीने की सही वज़ह से
क्या हम अनजान है

मंजिल नहीं, सफ़र है ज़िन्दगी
जी भर के जी लेना ही ज़िन्दगी

क्या खोया, क्या पाया - खबर नहीं
खुद में दुनिया बसाना - चाह नहीं

चाह को मिटा के दुनिया अपनाना
जीवन के मकसद को अंजाम देना
जिसने ईश्वर की चाह को सर्वोत्तम माना
उसीने धरती पे जीने की सही वज़ह जाना

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