Saturday, March 3, 2012

हमराज़

तुम कौन हो ?
मेरी परछाईं तो नहीं?
हर कदम पे मेरे साथ हो
पर जैसे ही उजाला होती हैं
तुम आस पास नहीं होते

कहीं तुम ख्व़ाब की तरह
हकीकत में ओझल हो जाते हो
और तनहाहियों के गहरी रात में
जगमगाते सितारों से लगते हो
तुम्हे कभी देखा तो नहीं
सिर्फ महसूस किया हैं

मेरे हमराही बनकर
मेरे साथ चलते हो
तुम जो भी हो मेरे साया हो
सिर्फ और सिर्फ एक राज़ की तरह
मेरे अपने हो

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