Universal space
Sunday, March 4, 2012
आज को जी लो ज़रा
इतनी सन्नाटा क्यों छाई हैं ?
यह कैसी मायूसी हैं?
यह लम्हा जी लो ज़रा
मरने को फुरसत नहीं हैं!
बीते हुए कल की परछाई हैं
या आने वाला कल सता रही हैं?
कुछ सोचने की पड़ेशानी से अच्छा
आज की ताज़गी में वक़्त बितानी हैं !
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