Thursday, February 21, 2013

प्यार और भक्ति

          प्यार - इस पाक शब्द के बारे में बस इतना बता दूँ  की यह एक एहसास है जिसे शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता । सिर्फ महसूस किया जा सकता हैं जैसे समुन्दर में डूबकी लगाने से ही पानी में बहने का एहसास होता है नाकि दूर से नज़ारा देखके! बहना मतलब लहरों के संग चलना या अपनी कश्ती का डोर किसी और के हाथ में पूर्ण रूप से समर्पण करके आनंद लेना .... यहाँ डूबने की बात नहीं आ रही न ही  तैरने की ... जब अपने से दुसरो पर विश्वास हो जाए, उसे प्यार की नीव कही जा सकती है, या बेपनाह मोहब्बत हो जाए बिना किसी कारण के, बिना किसी लेनदेन के… उसे प्यार कहते है शायद । शायद इसलिए क्यूंकि प्यार को समझाने के लिए कुछ अलफ़ाज़ काफी नहीं होते , यह तो कुछ एक उद्धरण के ज़रीए  कोशिश की जा सकती हैं । यह  एक इबादत है, एक जूनून कहा जा सकता है, हसीं ख़्वाब या खूबसूरत जस्बां जो हकीकत में बहुत किस्मतवालों  को नसीब होती  हैं। और जिनके नसीब में नहीं होती, वह भी प्यार के गीत गाके उसकी महिमा की शोभा बढ़ाते  हैं । 

          यही पे भक्ति का शुरुयात होता है, प्यार से बढ़कर  अगर कुछ हैं तो …वह भक्ति हैं , क्यूंकि जब प्यार में लोग अपने आपको पूर्ण  रूप से भूला देते हैं, उसमें  विलीन  हो जाते हैं, उस प्यार की महिमा के गीत गाके , उस तड़प में ही भक्ति हैं, इतना सुन्दर भाव  जो प्यार जैसे पवित्र भावना से भी ऊपर हैं, क्यूंकि इसमें ईश्वर्य गुण जुड़ जाते हैं। कहते हैं, भक्ति में इतनी शक्ति हैं की वह स्वयं नारायण को बुला लेती हैं । कृष्ण भगवान् ने भी गोपीयों को प्रेम लीला में बाँध लिया था, और वे सब प्रेम के रस में डूबे घर संसार छोड़कर मदमस्त झूम रहे थे, जब श्री कृष्ण भगवान् वहाँ से गायब हो जाते हैं । उस विरह की आग में जब गोपीयां जलने लगी तब वे दीवाने से प्रेम योगी बन गए, न की प्रेम रोगी । इतनी शक्ति है भक्ति में की वह  किसी भी नकारात्मक भावनायों से हमें बचाती है…  योगी के सारे गुण प्राप्त हो जाते हैं जब सच्ची भक्ति आत्मा में समाती हैं ।  ऐसे में राधा जी का अनुपम प्रेम और मीरा बाईं की अटूट  प्रेम भक्ति की गाथाएं सुनते हैं तो क्षणिक के लिए विचलित हो जाते है की किसकी प्रेम गांथा श्रेष्ठ हैं । असल में यह प्रेम ही विरह राग में भक्ति की रूप हैं जहां हकीकत में मिलन आत्मा में होती हैं - इतनी निष्ठा/ आस्था और श्रद्धा केवल भक्ति में ही अनुभव किये जा सकते हैं । प्यार का सर्वोत्तम  रूप ही भक्ति हैं । 

कभी आज़माके  भी  देख लीजीयें  । हालां  की - कहावत हैं कि "प्यार किया नहीं जाता, हो जाता हैं" - पर भक्ति के रस तो पूर्ण समर्पण से मिलता हैं । 

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