Friday, June 14, 2013

पुण्य हो, निष्पाप हो तुम

पुण्य हो, निष्पाप हो तुम
गमो से परे
खुशियों के बहार हो तुम

अनन्य हो, निराकार हो तुम
दिव्य गुणों में समाये
अनमोल वरदान हो तुम

रौद्र रूप में शिवजी का तांडव हो
मधुर लालिमा में कृष्णजी की बांसुरी
नूर की पारी हो या खुद की
अद्भुद जादूगरी हो

कला हो, कल्पना हो
ख़्वाब से रंगीन करिश्मा हो तुम
अग्नि की दहकती चिंगारी हो
तेजस्व का उत्ताप हो

आखिर किस चीज़ की स्वरुप हो ?
अपनी अस्तित्व से क्या अन्जान  हो ?
जागो उठो खोलो मन के द्वार
बंद दिलो में आने दो खुलके बहार

नज़रे मिलाओ अपने आप से
कब तक छुपायोगे  अपने इस
अनमोल महिमा को

स्वीकार हो, स्वीकार हो
आपकी जय जय कार हो!!!!









 

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