Thursday, June 27, 2013

बदलो का क्या

यह बादल ही तो है
आती है -

बरसके  चली जाती है
कभी सावन लाती हैं
तो कभी -
यूँ ही आँखें तरस जाती है
गरजके  खो जाती हैं
या फिर सो जाती हैं
यह बादल ही तो हैं
बदलो का क्या ?



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