दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,
तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।
अर्थ : इस संसार में मनुष्य का
जन्म मुश्किल से मिलता है. यह मानव शरीर उसी तरह बार-बार नहीं मिलता जैसे
वृक्ष से पत्ता झड़ जाए तो दोबारा डाल पर नहीं
लगता.तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।
कहत सुनत सब दिन गए, उरझि न सुरझ्या मन.
कही कबीर चेत्या नहीं, अजहूँ सो पहला दिन.
अर्थ : कहते
सुनते सब दिन निकल गए, पर यह मन उलझ कर न सुलझ पाया. कबीर कहते हैं कि अब
भी यह मन होश में नहीं आता. आज भी इसकी अवस्था पहले दिन के समान ही है.
कबीर कहा
गरबियो, काल गहे कर केस. ना जाने कहाँ
मारिसी, कै घर कै परदेस.
अर्थ : कबीर कहते हैं कि हे मानव !
तू क्या गर्व करता है? काल अपने हाथों में तेरे केश पकड़े हुए है. मालूम
नहीं, वह घर या परदेश में, कहाँ पर तुझे मार डाले.
पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात.
एक दिना छिप जाएगा,ज्यों तारा परभात.
अर्थ : कबीर का कथन है कि जैसे
पानी के बुलबुले, इसी प्रकार मनुष्य का शरीर क्षणभंगुर है।जैसे प्रभात होते
ही तारे छिप जाते हैं, वैसे ही ये देह भी एक दिन नष्ट हो जाएगी.
हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी, केस जलै ज्यूं घास.
सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास.
अर्थ : यह नश्वर मानव देह अंत समय
में लकड़ी की तरह जलती है और केश घास की तरह जल उठते हैं. सम्पूर्ण शरीर
को इस तरह जलता देख, इस अंत पर कबीर का मन उदासी से भर जाता है. —
जो उग्या सो अन्तबै, फूल्या सो कुमलाहीं।
जो चिनिया सो ढही पड़े, जो आया सो जाहीं।
अर्थ : इस संसार का नियम यही है
कि जो उदय हुआ है,वह अस्त होगा। जो विकसित हुआ है वह मुरझा जाएगा. जो चिना
गया है वह गिर पड़ेगा और जो आया है वह जाएगा.
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