Thursday, July 4, 2013

होश नहीं मद्होश हुए हम

 होश नहीं हैं हमको
मद्होश हुए हैं हम
मस्ती के प्याले में डूबे
किसे फिक्र हैं, क्या हैं गम?

झूमते गाते बस यूँही
कट जाती हैं ज़िन्दगी
किस किस का हिसाब रखे
साकी जाम हैं बाकी



यूँही मदहोशी छाई हुई हैं
न कुछ रंजीश हैं, न गिला
बरसो बीत गए हैं
बीता जो रंजोगम का काफिला

दूर ही सही, एक मुसाफिर काफी हैं

हैरान क्यों हो, साहिल पास ही हैं
कश्ती जो डूबा, पड़े शानी की बात नहीं
गिरके संभलना, अब आदत सी बन गयी

दिल की ख़ामोशी में भी एक सुकून सा हैं
तन्हाई के गहराईयों में, दिलचस्प राज़ छुपा हैं
 ईबादत से सर झुक जाता हैं उनके दरबार में
रोशन से ख़याल दिल में समा जाता हैं












बेपनाह मुहब्बत जीने की वजह बन गई हैं
अब फुरसत किसे ज़माने से गिला शिकवा का ....


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