Monday, November 26, 2018

सच की सच्चाई

सच्चाई को जानना है तो, ख़ुशी  के उजालों  में नहीं
बल्कि गम  के अंधेरों में तराशियें 

राज़ की तरह सैंकड़ों परत के पीछें छुपे हैं
परछाई जैसी  हमेशा साथ होते हुए भी
दिन के उजाले में गायब हो जाती हैं
जबकि अँधेरों में इसकी आह निकलती हैं

 कोई तो इसे जाने, कोई तो इसे अपनाए
इसी फरमान लेके हमसे यह कहती हैं
जानके भी अनजान बनते है
सच्चाई से लोग क्यों मुकर जाते हैं

सच्चाई की परख तो तलवार की तेज़ धार जैसी है
ज़रा  सी चूक जाए तो, आर पार कर देती हैं

एक वह सच है जो समय के गति से बदल जाती हैं
कल जो सच लगता था आज वो बचपना लगता है
आज की सच्चाई कल रहे न रहे
हर पल को अपनी तरह से  जी लेते हैं
सच ही तो हैं फिलहाल,
झूठ का तो वक़्त निकलने के बाद पता चलता हैं
और सच जो कर्वी होती है उसे निगलने के लिए
कुछ ही लोगो के पास हिम्मत होती हैं
और बाकी दुनिया को क्या फिक्र सच को जानने की
ज़रुरत भी क्या है.....?

सच्चाई क्या है कभी सोचा है
मन का खेल हैं जो वह सच नहीं हो सकती
फिर भी हर सक्ष  अपनी तरह सच्चाई को जीते हैं

सच्ची ज़िन्दगी,  सच्चापन- यह सब अपने अपने ज़सबात हैं
सच में,  सच क्या सपना सा है जो अच्छा लगता है
और वो सच जिस से हम वाक़िफ़ होना नहीं चाहते
उस सच को भी दफना देते हैं.... यह ही सच की सच्चाई
हैं!!!!

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