Monday, November 26, 2018

ज़सबाती


आधिंयों की तरह है यह ज़सबात
खुद को इसमें फिसलने न दो
कैसे भी हो हालात

कुछ नहीं तो यूंही समझ लो
रोक लो खुदको, भटकने न दो
वरना ले डूबेगी तुमको
कर देगी बरबाद!

आगाह कर  रही हूं
सम्भलने की देर है
लुट जाओगे बाज़ार में
फरेब ही फरेब है।

उमंगो के जोश में
मन को मचलने न दो
नशे के रात में
दिल को बहकने न दो

कल रहे न रहे
वक़्त  को गुज़रने न दो
अपनी अपनी ज़िंदगी है
रियासत अपनी जागीर है
हुकुमत कोई और करे
यह किसी की औकाद नहीं।

गम की फरमाईश नहीं
तन्हा दिल तन्हाई में रहने भी दो
राज़ की बात है
परदा आज रहने ही दो।

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