कहते है ...
मेहनत रंग लाती है
इस बार कुछ यूं हुआ
मेहनत के पसीने में
खून का रंग घुला
महामारी के पकड़ में
जब नाउम्मीदी का दौड़ चला
हालात के हाथ मजबूर होकर
जनता ने बेबसी का कर्ज अदा किया
आज फिर एक बार ज़ालिम दुनिया ने
अपना अंधा कानून दोहराया
मजदूरों से उनका हक छीन कर
झूठे समाज को बेनकाब किया
कतरा कतरा जोड़ कर
उसने एक ख्वाब पिरोया
खुशीयों के नाज़ुक डोर से
जिसमें बसाई अपनी आशियाना
उसे क्या इल्म था सपने बुनने की सज़ा
उसके कुर्बानीयों का खुला कत्लाम हुआ!
श्रमिक हम्हारे मजबूत हाथ है
जिन्होंने न जाने कितने इमारतें खड़े किए
आज उन्हीं के उम्मीद भरी बाहें काटकर
हैवानियत का शर्मनाक मिसाल दिए
सस्ते पगाड़ पर काम करने वाले आम लोग
अक्सर उनके वजूद सस्ता करार दिया जाता है।
ऊंचे ईमारतों पर रहने वाले वो लोग
अक्सर बेगुनाहों को लूटकर,यह भूल जाते हैं
इन्सानियत के नज़रों से गिरकर
वह अपनी नीची औकात दिखाते हैं।
मेहनत रंग लाती है
इस बार कुछ यूं हुआ
मेहनत के पसीने में
खून का रंग घुला
महामारी के पकड़ में
जब नाउम्मीदी का दौड़ चला
हालात के हाथ मजबूर होकर
जनता ने बेबसी का कर्ज अदा किया
आज फिर एक बार ज़ालिम दुनिया ने
अपना अंधा कानून दोहराया
मजदूरों से उनका हक छीन कर
झूठे समाज को बेनकाब किया
कतरा कतरा जोड़ कर
उसने एक ख्वाब पिरोया
खुशीयों के नाज़ुक डोर से
जिसमें बसाई अपनी आशियाना
उसे क्या इल्म था सपने बुनने की सज़ा
उसके कुर्बानीयों का खुला कत्लाम हुआ!
श्रमिक हम्हारे मजबूत हाथ है
जिन्होंने न जाने कितने इमारतें खड़े किए
आज उन्हीं के उम्मीद भरी बाहें काटकर
हैवानियत का शर्मनाक मिसाल दिए
सस्ते पगाड़ पर काम करने वाले आम लोग
अक्सर उनके वजूद सस्ता करार दिया जाता है।
ऊंचे ईमारतों पर रहने वाले वो लोग
अक्सर बेगुनाहों को लूटकर,यह भूल जाते हैं
इन्सानियत के नज़रों से गिरकर
वह अपनी नीची औकात दिखाते हैं।
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