मनुष्य जन्म मात्र अपने अधिकारों के लिए सचेत है
बुनियादी तौर से मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है
जो अपनी सुरक्षा के साथ साथ दुसरे जीवो के लिए भी सोच सकता है
कुदरत ने हमें बाकी प्राणियों से श्रेष्ठ बनाया है इस मामले में
बुद्धि की तीक्ष्मता से हम क्या नहीं कर सकते
ईश्वर ने हम्हारे बाज़ुओं में इतना बल और कला दिया
कि हम नए कारनामे कर सके, नयी बुलंदिया छू सके
मानव जाती ने इस धरती पर आते ही नयी नयी खोज की और
अपने जीवन को और सुगम बनाने की व्यवस्था में जुट गए
नतीजा- आज ऐसी स्थिति हैं की इंसान ने अपने सोच से बढ़कर तरक्क़ी की
जो पहले किसी ने सोचा नहीं था कि हम यहाँ तक पहुँच सकते हैं, ऐसी क़यामत ला सकते हैं
यक़ीनन ये मानव जाती के लिए गर्व की बात हैं की हमने सदियों से केवल नयी ऊँचाईयाँ छूनी चाही
बेहतर से बेहतर ख्वाब बुने जो आज मेहनत और विज्ञान से कामियाबी की शिखर छू रही हैं
इतनी प्रगति के बाद भी क्या अभी भी मनुष्य संतुष्ट नहीं हैं ?
क्या वाकई में हम लोग सही मायने में अग्रसर है?
कहीं ऐसा तो नहीं की हमने अपनी पाने की चाह में -जाएज़ सीमा को लाँघ दिया हैं
तभी तो एक मायने में अब जो खोज हो रही है वो विज्ञान की तो जीत है पर
सारे जीव जंतु पशु पक्षी पेड़ पौधे पे भारी पर रहा है - यहाँ तक की खुद जनजातीयों पे भी
भूमण्डल के वातावरण पे बुरा असर तो पर ही रहा हैं बल्कि
खनिज पदार्थो के शोषण इस हाल तक हो चूका है की माटी अभी रिहहि की दुहाई मांग रही हैं
नदियां, झरने, यहाँ तक की समुद्र भी दिशा बदल रही हैं , लुप्त हो रही है
बर्फीले चोटियां तीव्र गति से पिघल रही हैं
तो वास्तविक में तो यह अनर्थ ही है, इसे विकास कैसे कह सकते है भला !
स्वभाविक हैं की प्रकृति भी अपनी प्रकोप दिखा रही हैं
बाढ़, भूचाल, सूखा, तूफ़ान साइक्लोन आदि से धरती पे प्रहार हो रहा हैं।
ये कोई अंधाधुन सज़ा नहीं है जो मनुष्य को अपने स्वार्थी कर्मो के लिए मिल रहा है
बल्कि ये यथार्थ न्याह है प्रकृति की इस बोध को जगाने के लिए की मनुष्य प्रकृति से बड़ा नहीं हो सकता
उसकी क्षमता केवल सीमित है, और उसकी सही उपयोग करने से ही इस घोर अन्याय से उपाय हैं।
आज कई महानुभावी जनो ने इस कार्य को संभाला और इस संरक्षण योजना को प्राधान्य दिलाया
जितने जटिल ये घाटा हो चूका था, उतना ही संवेदन शील तरीके से
इस दुर्दशा को एक नयी दिशा में रुक बदला गया।
ऐसे महान कार्यकर्ता को सलाम जिन्होंने अपनी जागरूकता से दुनिया में यह संदेशा फैलाया
शांति की, न्याय की, एकता की , ज़िम्मेदारी की
भगवान ने सबको समान बनाया हैं।
हम सब प्राणी एक स्तर पर जीते है,
कोई किसीका छीन नहीं सकता-
उसकी विधान में ऐसी व्यवस्था है की सबको न्याय मिलेगी।
अतः हम सब अपनी खुदगर्ज़ी से ज्यादा अपनी ज़िम्मेदारियों को समझे
और नैतिकता से निभाएँ , तभी मानव जाती को उत्तम जाती होने का श्रेय मिलेगा।
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