Friday, March 11, 2022

दिव्यांश

 दिव्यांश 


 

दिव्यता का अंश था वह 

आनेवाला वंश था वह 


हुनर का खज़ाना था वह

प्यारा सा अनमोल बच्चा था वह 

 

आज हमने उसे खो दिया 

हमारे झूठे समाज के दरिंदों ने 

अपनीऔकाद दिखाई 

किस हद तक गिर सकते है 

इसकी कीमत चुकाई एक नन्ही सी जान ने !

 


आख़िर क्या अंतर रह गया फिर 

कातिलों में और बनावटी समाज के ठेकेदारों में 

स्कूल कॉलेज में चल रहा  शोषण 

क्या अभी भी खून मांगती है ?

न्याय होने की कानून मांगती है ?

इन्साफ तो दूर इंसानियत ही हम खो बैठे 

कब तक हैवानियत के शिकार होने दे 

फूल जैसे बच्चो के आहुति देते रहे !

 

शर्मनाक काण्ड होता गया 

और उस बेबस  माँ को सताया गया 

क्या यह कूटनीति नहीं है अनुशाशन की 

क्या उम्मीद लेके जाएगी अगली पीढ़ी 

जहाँ शिक्षा, ज्ञान , विद्या की उम्मीद है 

वही पे अनौपचारिक  अनैतिकता को ढील दी जा रही है 

काले कारनामे बेख़ौफ़  पनप रहे है

इसकी  ज़िम्मेद्दारी कौन लेगा 

हम्हारी ही आखो के सामने घट रही वारदाद 

कोई दुर्घटना करके टालने वाली बात नहीं 

पापीयों  को उनकी सज़ा दिलाने की नैतिक ज़िम्मेदारी उठायें 

वरना बेफिज़ूल के जी रहे है हम !

पाप का  भार  उनके कंधो पे भी उतना भारी पड़ेगा 

जो लोग अब भी चुप बैठे  है 

मूक दर्शक बनके तमाशा देख रहे है 

अपनी अन्तरात्माओं को जगाओ

और असुरो का संहार करो 

इंसान के मुखौटे पहनकर आज भी 

 कई दरिंदे खुले आम क़त्ल कर रहे है 

कल को अंतिम समय पे क्या जस्बात लेके जाओगे 

जब ज़मीर पाप पुण्य के हिसाब मांगेगा 

कमज़ोरी से ऊपर उठकर आओ  एक नीँव बनाये 

खुद की हिफ़ाज़त कर सके ऐसा मजबूती लाए। 


प्रशासन से बढ़कर हर एक का जज़्बा बने 

 हर बच्चा सुरक्षित हो इसका लक्ष्य बनाये।


 





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