Sunday, January 30, 2011

ढूँढने से मिल जाती हैं जन्नत यहाँ भी

आंसूयों के मझधार में
क्यों पड़ा है
जब पर्वतों के शिखर पर
तेरा साहिल खड़ा है

ढूँढने से तो मिल जाती है
जन्नत यहाँ भी
ऑंखें मीचके बैठे हो तो
कुछ क्या दिखेगी

हाथ में जाम लिए कहते हो
मधुबन कहाँ है
खुशबू लूटाती हुए फूलो से पुछो
उनका गौरव जहाँ है

इन हथेलियों पे क्या लिखा है
किस्मत की लकीरें नहीं
एक कोरा पन्ना मिला है
जिसपे तू खुशियों के रंग भर दे
इंसान बनाने वाले खुदा को भी दिखा दे
तकदीर हम खुदकी कैसे बनाते

दीये जलाने हैं
हर घर पे
चैनो अमन के
रौशनी फैलानी है
अपनी आज़ाद मन से
ख़ुशी के चिराग
हर चेहरे पे लायेंगे
जन्नते बहार इस
दुनिया को बनायेंगे

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