Wednesday, February 2, 2011

मेरी दीदी सोना

मेरी दीदी बड़ी सयानी
भोली भाली दिल की सच्ची

खान में जब पड़ी थी
जंजीरों में जड़ी थी
जीवन के संघर्ष में
अकेली वह लड़ी थी

मधुर सुरों से बाँध लेती हैं
चाहे हो कोई अन्जान
कल्पना के रंग संजोके
करती वह मन को आज़ाद

अनुशाशन के बंदिश में
कर्म करे वह अबिराम
रुके नहीं बढ़ते कदम
जब हिम्मत से करती कुछ ठान

गुमनामी के अंधियारों में
खो गई थी उसकी निशान
तप के, जलके - निखर गयी तुम
तुम पे है हम सबको नाज़

दुश्मनों को भी अपनाके
बन गयी सबके दिलो की शान
अपनी मेहनत के बलबूते पे
बनाई अपनी अलग पहचान

बड़ी शिद्दत से उसे पुकारू
आज उसी का नाम
सोने पे सुहागा हो तुम
खिल उठी सबकी मुस्कान





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