Tuesday, November 1, 2011

प्रकृति


काटिले झाड़ियों में से एक फूल
मुझे अपनी नाज़ूक नर्मी देकर
शुष्क हवायों के झौंकें के साथ
मस्त अपनी मन्जील की और उड़ता चला

उसे युँ झूमते लहराते देख
मेरा रोम रोम जाग उठा
इस अभिलाषा में कि देखू
आखिर एसी क्या अन्तर है
उसमे और मुझमे

कुछ सोच विचार कर युँ लगा
जैसे उसे दुसरों को खुशी देने की
कोइ अलग एहसास नही है
बल्कि यह तो उसकी प्रकृति हैं
कोइ प्रयास नही

वाह रे प्रकृति ! क्या कमाल का बनाया तुझे खुदा ने
जो खुद के नही, सिर्फ दुसरों के खातीर जी रहा हो
गर हम भी कुछ पल दुसरों के नाम कर दे
तो यह जहान जन्नत न बन जाए!!!!

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