Monday, June 24, 2013

जान के अनजान

दुनिया तो हैं रब का खेला 
तू ही नहीं यहाँ  अकेला 
जो दुनिया में हो रोया 
सब  कुछ पाके भी खोया 
 
आँसुयो के मझधार में 
क्यों हो खड़े 
रोने के तो बहाने मिल जायेंगे 
दुनिया हैं गम से भरे 
 
खुशिया तो बस एक मोती हैं 
मिलते सबको यह ज्योति 
फिर भी दुनिया रोटी हैं 
बदनाम इसी में होती हैं 
 
खुशियाँ तो आती हैं बेपनाह !
हम ही इन्हें रोक लेते हैं 
फिर खुद ही  को कोस लेते हैं 
 
आखिर कब तक रहेंगे 
जान के अनजान
क्यों  बने रहे नादान 
 
वक़्त हैं यह
खुशियों का करे सम्मान 
और बटोरने से ज़्यादा  
करे जग का  कल्याण 
 
फिर देखना न  होगी खुशियों की कमी 
और बरसते रहेंगे 
बिड बादल आसमान 
और यह सर ज़मी
 
न जाने किस किस की 
दुआयों का असर हैं 
की अब तो यह आलम हैं कि 
ख़ुशी से आँख भर आती हैं!!!


 

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