दुनिया तो हैं रब का खेला
तू ही नहीं यहाँ अकेला
जो दुनिया में हो रोया
सब कुछ पाके भी खोया
आँसुयो के मझधार में
क्यों हो खड़े
रोने के तो बहाने मिल जायेंगे
दुनिया हैं गम से भरे
खुशिया तो बस एक मोती हैं
मिलते सबको यह ज्योति
फिर भी दुनिया रोटी हैं
बदनाम इसी में होती हैं
खुशियाँ तो आती हैं बेपनाह !
हम ही इन्हें रोक लेते हैं
फिर खुद ही को कोस लेते हैं
आखिर कब तक रहेंगे
जान के अनजान
वक़्त हैं यह
खुशियों का करे सम्मान
और बटोरने से ज़्यादा
करे जग का कल्याण
फिर देखना न होगी खुशियों की कमी
और बरसते रहेंगे
बिड बादल आसमान
और यह सर ज़मी
न जाने किस किस की
दुआयों का असर हैं
की अब तो यह आलम हैं कि
ख़ुशी से आँख भर आती हैं!!!
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