अंधेरों की परछाई में
क्यों ढूंढ रहे हो जीने का बहाना,
कबूल किया हैं जब आंधी तूफान को
फिर हार जाने से क्यों घबराना।
फट जाएगी यह ज़मीन, रो पड़ेगा आसमान भी
बाज़ी लगायी गयी है बेफिजूल तेरे अरमानो की
इतने शिद्दत से जब तुने पुकारा
हर फरमान सुन ली जाएगी
पीछे छूट जायेगा ज़ालिम ज़माना
निकल पड़े जब सुनहरी मंज़िल की ख़ोज में
वहाँ न कोई रात की खाई हैं
और न घुटती हुई तन्हाई हैं
बस हैं तो सिर्फ दिन का उजाला
जहाँ मासूम दिल आज भी महफूज़ हैं!!!
क्यों ढूंढ रहे हो जीने का बहाना,
कबूल किया हैं जब आंधी तूफान को
फिर हार जाने से क्यों घबराना।
फट जाएगी यह ज़मीन, रो पड़ेगा आसमान भी
बाज़ी लगायी गयी है बेफिजूल तेरे अरमानो की
इतने शिद्दत से जब तुने पुकारा
हर फरमान सुन ली जाएगी
पीछे छूट जायेगा ज़ालिम ज़माना
निकल पड़े जब सुनहरी मंज़िल की ख़ोज में
वहाँ न कोई रात की खाई हैं
और न घुटती हुई तन्हाई हैं
बस हैं तो सिर्फ दिन का उजाला
जहाँ मासूम दिल आज भी महफूज़ हैं!!!
No comments:
Post a Comment