Wednesday, December 18, 2019

पहचान

अपनी पहचान जिसने रूबरू कराया है,
 कैसे कह दु की वह अपना नही पराया हैं।

 बड़ी शिद्दत से जाना है तुझे कुछ इस तरह
भड़ी महफ़िल में नायब सा नूर पाया हैं।
तू यकीन कर या न कर , मैंने यह माना हैं-
 खुदा ने अपने बंदों से ही मिलवाया हैं।
 रब मिलते तो उन्ही के रूप में मिलते तो नही
 खुदाया खुद से मिलने का बहाना ही सही
हर इक शक़्स जो खुद से जुड़े जज़बातों में
अपनी खोई हुई रूह की इबादत सा लगे
 तूने गर जान लिया होता तेरे इस तन्हाई में
बस एक पल का साथ ही सहारा होता

 बुझते दिये के लौ से पाया था एक झलक
 सच्चे दिल से जो मांगी थी- वो मुमकिन लगे एक पलक
 उसी लौ से ली थी जो मैंने एक शिखा
रोशन आज हो रही है मेरी गुलिस्तां!
तू भी एक रोज़ मेरे खुशियों से भर ले दामन
तेरे अंधेरों का उजाला हो सवेरा!

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