Thursday, July 30, 2020

रूबरू

कहीं तस्वीरें भी बाते किया करते है ?
मुझसे मेरी रूबरू इसी इत्तेफ़ाक़ से हुई

कहते है आईना झूठ नहीं बोलती 
मुझे उम्मीद हैं उस हर एक अक्स से
जो आईने में नज़र आती है

आईना ही मेरी सच्च्ची  दर्पण
मुझसे मुँह नहीं फेरती
आंसुओं के नमी को नज़रअंदाज़ नहीं करती
घंटो देर रात तक मुझसे बातें किया करती
रूठी हूँ तो मनाती , टूटी हो तो सहलाती
मेरे हर एक घॉव  के निशाँ को पहचानती

यहीं खुलासा  हुआ मेरे गुमान का
कि अपनों की बातें अपने ही समझते हैं
अपने जब पराये लगते हैं
अपनापन बिखर जाता है
दूर किसी समुन्दर के आस में
रेत का टीला जब धसने लगता है

भरी बारिश में भी प्यास लगती है
और भरी महफ़िल में सूनापन
तप्ति धूप में जब  पाँव छील जाते है
तकलीफ से ज्यादा दिल को ठेस लगती है

मुझे हर वह लम्हा अज़ीज़ है
जहाँ मैं  खुद को ढूँढ  पाती हूँ
कोई और नहीं मुझी में , मैं  नज़र आती हूँ
मेरा गुरूर कह लो, या सुरूर
यह तो वक़्त का तकाज़ा हैं
जो हमने यह राज़ जाना हैं
और अब यह आलम हैं
इन कोरे पन्नो पे लब्ज़ से नवाज़ा हैं
अपनी दास्ताँ  यादो में  पिरोया हैं






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