नारी की महिमा है अपरंपार
न कोई सीमा न कोई बाँध
स्त्री शक्ति के शौर्य गाथा
चन्न शब्दों में कैसे करू बयान
श्रृंगार रस में मनमोहिनी, प्रेम रस में राधा
दिल के इश्क़ में जान लुटा दे आशिक़ दीवाना
अप्सरा की जादू में बने शम्मा का परवाना
लावण्य रूप रंग में उज्जवल तन,
सौम्य सुशील शीतल है मन
सर्वगुण सम्पन्न है घर की लक्ष्मी
कन्या हो या नयी नवेली दुल्हन!
ममता की मूरत, त्याग की मिशाल
करुणा की धारा, सदा बहार !
ऐसी है जब नारी का स्वभाव
प्रश्न उठता है आखिर क्यों हुआ नारी का तिरस्कार?
क्या यही है विधि का विधान!
जिस नारी को प्रेरणा श्रोत माना जाता है
जिसको अनमोल कहाँ जाता , क्या रह गयी उसका मोल?
उस नारी की कीमत लगायी जाती गयी
सरे बज़ार में निलामी हुई
जंग के मैदान में सौदा हुआ
अपहरण से लेके धर्षण तक
कत्ले सरे आम हुआ
रिश्तों में बट गयी, किश्तों में बिक गयी!
तेजस्विनी नारी क्यों हुआ तेरा यह हाल ?
सदियों से नारी घर को सॅवारती ,
निपुण कला कृतियों की सृजन करके सजती सवारती
बेपन्हा मोहब्बत से अपने स्वामी की सेवा करती
बच्चो के पालन पोषण में खुद को निछावर कर देती
नारी जिससे वंश बढ़ती है , उसी नारी की वहिष्कार हुई !
कन्या के जनम लेने की अधिकार को छीना गया
शाश्त्रो की झूठी दुहाई देके संस्कार के नाम से
रीत रिवाज़ो के ज़ंजीरो में जकरा गया
बुरी नज़र और नापाक नियत के दरिंदो ने
पर्दा / घुंगट का रिवाज़ जारी किया
और इसी के आर में औरत जात को नज़र बंद किया गया
नारी की गरिमा को कुचला गया उन्ही बंद दरवाज़ों के पीछे,
और कुलक्षणी अपवादों से गुनहगार बनाके
ज़ंजीरो में कैद किया गया
कालकोठरी में बंद सिसकती नारी अपनी आह भी न सुन पाती
बिन फ़रियाद के सज़ा सुनाई जाती जिसकी ग़ुनाह किये बिना
बेकसूर को गुनहगार करार दिया जाता
उसके अस्तित्व को मिटने में कोई कसार नहीं छोड़ा गया !
यह कैसी बिडम्बना की घड़ी थी?
जुल्मोसितम के आग में जब वह दहकती, तड़पति
उसकी रूह भी काँप उठती हैवानियत पर !
बरसो बीत गए , ज़ुल्म की देहशत बढ़ती गयी,
इस हद तक की पीढ़ा की ज्वाला भड़क उठी एक वक्त |
उस पर की जानेवाली यातनाओं ने जब
उसकी रूह को इतना झंझोड़ के रख दिया
उसके अहम् को इतना चोट पहुंचाया की उसकी सहने की बाँध टूट गयी
यह वही घड़ी थी, वह मोड़ था जो नारी शक्ति के जागरण की पहर बनी
अग्निकुंड में से वह ज्वाला बनके निकली
मानो हवन के आहुति के बाद फलस्वरूप वरदान मिला
अखंड शक्ति का अनुभव हुआ जो पहले से ही उसमे मौजूद थी
पर उससे रूबरू मानो पहली बार कराया गया हो
इस बार नारी ने अपना मुक्तिकरण का बेड़ा खुद उठा लिया
यह उसकी संघर्ष अपनी थी,
बाहुबल से ज्यादा उसके मनोबल में उम्मीद बढ़े
स्त्री शशक्तिकरण के सभी मार्ग खुलने लगे
आज भी नारी हर यातनाओ को झेलने के बजाय, प्रतिवाद की आवाज़ उठाती है
और अपनी बुलंद हौंसलों से खुद को कैद या बंदिश से रिहाह कर स्वतंत्र बन जाती है
आज के दौड़ में ऐसी कोई पहलु नहीं है जहाँ नारी ने कदम नहीं बढ़ाया
और अपनी मेहनत और शिद्दत के दम पे- न सिर्फ कामयाबी का मुकाम हासिल किया
बल्कि बुलंदियों को छूके आगे निकल चुकी
यह है नारी की स्त्री शक्ति की अनुपम मिसाल !
नारी को किसी की बराबरी नहीं करनी थी
उसने अपने वजूद को संभाला
उसके लिए औरत मरद दोनो अपनी जगह श्रेष्ठ है
और इसी मान्यता के आधार पर
हर स्त्री यथार्थ सम्मान की योग्य है
नारी की मर्यादा स्वयं नारी ने लौटाई है!
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