अनंत की और
इस धरती पे जन्म लेते ही
मनुष्य का जीवन प्रारम्भ होता है
लेकिन हमारे जीवन समय व
काल के चक्रव्यूह में बंधता जाता हैं
और अंत में एक ऐसा वक़्त आता है
जब मृत्यु के रूप में जीवन समाप्त हो जाता हैं
तो काल का यह माया जाल
हम्हें हमेशा सीमित होने का एहसास दिलाती हैं
कि कभी न कभी हम नहीं रहेंगेमा
हमारी अस्तित्व अस्थायी है, हम नश्वर है
अंत की अनुभूति- मृत्यु भय के रूप में हमे सताने लगती है
फिर भी हम कही न कही यह जानते है
की हम अंत से परे हैं,
हमारे भीतर प्रकाश रुपी ज्ञान की अनुभूति
हमे अनंत की आभास देता हैं
और इसी अनंत की खोज में हम निकल पड़ते हैं
आध्यात्मिक ज्ञान साधना और तपस के मार्ग में
हम कार्यरत होते हैं
हमारी सारी शक्तियाँ, कर्म,
हम इस अनंत रूपी ज्ञान को केंद्रित करके आगे बढ़ते हैं
लेकिन इस बार हमे मृत्यु की भय नहीं होती
क्योकिं सत्य के मार्ग पे चलते हम सत्य को पहचान पाते हैं
अपने जीवन काल में इतना जान लेना ही किसी क़यामत से कम नहीं
हमारी असली अस्तित्व यह शरीर या मन मात्र नहीं
बल्कि असल में इससे परे हैं - जो समय के साथ बदलता नहीं
समय उसको बाँध नहीं पाता, न हीं घटा पाता
मनुष्य तो एक योनि हैं जिसमे हमने रूप लिया
इस रूप के ढलते ही हम मुक्त हो जाते हैं
अगले सफर के लिए आज़ाद हो जाते हैं
और यह यात्रा अनंत की औरअग्रसर हो जाती हैं
इस यात्रा का भीअंत हैं जब हम अनंत में समां जाते हैं
हमारी अस्तित्व घुल जाती हैं ब्रह्माण्ड में
यहीं परम सत्य को जान लेना
हमारी भौतिक जगत में मनुष्य रूप धारण करना
एक ख़ास उद्देश्य के लिए होता है
हमारी पूर्णतः विकास इसी रूपांतरण के लिए हैं
कि हम सोये हुए आत्मा को ज्ञान की प्रकाश से जगाये
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