Tuesday, January 4, 2022

चेतना की लहर

चेतना की लहर 

    जीवन को गहराई से जीने के लिए मन में उत्साह होना अवश्यक हैं - उमंग आनंद ! और यह आनंद का आभास तब हो पता हैं जब हम शांतिप्रिय और सत्य को अपनाते हैं। किसी प्रकार की छल  या कपटता हमारे जीवन में प्रवेश नहीं कर पाती।... अगर हम सतर्क और जागरूक रहे। तन और मन से सदैव त्यैयार  रहे की हमे हर पल को उत्सव के तरह मानना है। हर क्षण कीमती हैं। तब हम हर व्यक्ति, हर स्थान, परिस्थिति का भी आदर करना सीख जाएंगे। 

    परिस्थिति की जब बात आती हैं तो ज्यादातर परिस्थितियां हमारे वश में नहीं होती और कई बार प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ता हैं। हमें  ऐसी परिस्थितियों से घबड़ाकर हिम्मत नहीं हारनी  चाहिए बल्कि बड़ी शिद्दत से ईश्वर को शुक्रिया करना चाहिए की उन्होंने हमे  इस काबिल बनाया की हम बड़ी बड़ी तूफानों  से टक्कड़ ले सके। यह तभी संभव है  जब हमारी आस्था अटल हो और हम धैर्य और सहनशीलता के असीम शक्तियों का प्रयोग कर सके। सबसे पहले समता बनायीं रखनी है, इस भाव से कोई पड़ेशानी हमेशा के लिए रहती नहीं, यह जैसे आई है वैसे इसे चले जाना है। हमारे भीतर के शक्तियों को अभिव्यक्त करने का समय आ गया है, यही  सोचके आगे बढ़ना है। 

    उसी तरह कोई व्यक्ति अगर हम्हारे स्वाभाव के प्रतिकूल हो , या जिनसे हमारे विचार नहीं मिलते, उनको हम्हें बड़े आदर से स्वीकार करना चाहिए की वह जैसे है वह स्वाभाविक हैं।  फिर उसपे गौड़ करना चाहिए की यदि कोई सुधार  की सम्भावना हैं तो जरूर उसपे अमल कीजिये अन्यथा हमे अपने जैसा होने का अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए।  हाँ इतना ज़रूर कर सकते हैं की हम उनको नाप तोलके न टटोले , क्यूंकि अगला शक़्श भी यही सोच सकता हैं।  और अगर कही आपको परखा जा रहा हैं तो इसमें भी विचलित न होकर हमें  उसी सम भाव से साक्षी रूप, समर्पण भाव से अपने को कष्ट पहुँचने से बचा सकते है।  यह जान लीजिये, ऐसा करने से न केवल आप अपनी सहनशीलता का काबिलियत दर्शा रहे हैं अपितु बुद्धिमत्ता भी ।  यह तभी संभव है जब आप ज्ञान मार्ग में है और उससे बढ़कर उस ज्ञान को ले पाने की कृपा के पात्र है। हम्हें कृपा सिंधु वह सारी शक्तियाँ दे रखी हैं जो हमें  कोई भी मुश्किल वक़्त का सामना करने के लिए चाहिए।  अंतर सिर्फ इतना है की हम कितने जागरूक हैं इस बात की और हम्हारी काबिलियत का जड़ तो हम्हारी आत्मविश्वास से जुड़ी  हैं।  और इसका बल तो ईश्वर के शरणागति में है, ईश्वर के ऊपर अपार श्रद्धा और उनकी असीम करुणा सागर में पूर्ण रूप से विलीन हो जाने में हैं । 

    कहने का तात्पर्य यह की हम्हारी इच्छा, मनसा, भक्ति, श्रद्धा और समर्पण कितनी मात्रा में है यह तय करता है की हम्हारी जीवन यात्रा कैसी होगी।  कोई समुद्र के किनारे पे ही संतुष्ट है तो वह समुद्र तट का आनंद लेके जीवन बिता देगा।  कोई कोई थोड़ी और इच्छा रखते है तो आनंद के लेहरो में अठखेलियाँ लेके ही कृतार्थ होते है और जीवन संपूर्ण करते हैं।  और यह कारवां बढ़ती रहती है जिसकी जितनी जिज्ञासा हो, जितनी आदर्श हो , जितनी तृप्त न होने की प्यास हो, वह उतनी दूर जाने की परिकल्पना करते है और कुछ हद तक सफल भी होते है।  सबसे जांबाज़ जो होते  है वह सिर्फ ऊपरी विजय से संतुष्ट नहीं होते  बल्कि अपनी  जान की बाज़ी लगाने तक का जज़्बा रखते  है- उस गहरायी तक जाने के लिए।  सिर्फ इस तीव्र आकर्षण से की उन्हें ग्युहतम राज़ जानने की व्याकुलता हैं।  तो वह साधक सबसे ज्यादा, सबसे पूर्णता से जीवन  को जान पाता है।  उसे न समुद्र के लेहरो से संतोष है , न ही गहरायी से, उसे इस खोज की अंत तक जाना है की यह समुद्र अगर इतना विशाल, अनुपम है तो इसके सृष्टिकर्त्ता की महिमा कितनी अपरम्पार होगी ! 

    हम सभी में यह जीवन को जीने की कला छिपी है।  हमे वह तमाम साधन अपनाने चाहिए ताकि हम  उन सारी शक्तियों  द्वारा कुशलता के साथ अपनी शक्शियत को निखार सके।  तभी हम युगो तक इस लोक में अपनी अस्तित्व की छाप  छोड़ जायेंगे अगले कई पीडियों के लिए मिसाल बनकर।  

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