Tuesday, February 22, 2022

Naari - Shakti ka swaroop

 हाँ मैं आज की नारी हूँ 

कंधे से कन्धा मिलाके  चलने वाली 

हर क्षेत्र में सहभागी हूँ

तेजस्विनी हूँ , स्वाभिमानी हूँ 

 

श्रृंगार से सृजन तक 

हर रूप में ढली हूँ मैं 

बेटी बनके नाज़ो से पली हूँ मैं 

तो बहन बनके  खिली भी  मैं 

फिर बहु बनके गृहलक्ष्मी बनी 

और माँ का गौरव भी  मिला 

हर स्तर पर खड़ी क्या उतरी 

 जग ने मुझको अपने आप से जुदा किया !

अपने वजूद की याद भुलाके 

मुझे रोना मंज़ूर न था 

आज भी कितने घरो में 

गुमनामी के ज़िन्दगी जीते है कई स्त्री 

अपने होने का एहसास कब का छोड़ चुकी है 

घर परिवार के रिश्ते नाते 

निभाते हुए आज भी अपनी आवाज़ खो चुकी है 


मर्यादा के नाम पे 

मुझे न रोकना, मुझे न टोकना

अंतहीन हैं मेरी राहें 

सीमाओं के पार हैं 

निरंतर चलने वाली 

अविरामी बहने वाली धार हैं 


मुझे घर गृहस्ती में बाँध के न रखना 

पंख लगाके मुझे भी है उड़ना 

 मेरे भी कुछ अरमान हैं

हाँ,  संकोच रखती हूँ मैं  

त्याग की मूरत बनने से

अपने हक़ की बलिदान क्यों दू 

जब मुझको भी पता हैं 

 लाख़ भला है खुद की हिफाज़त में 

 अपने अधिकारों के हित में 

वह बुलंद आवाज़ हूँ मैं

 

युग युग से संस्कारी है नारी 

परम्पराओं के अनुयायी है 

आदि युग से नारी की महिमा 

सुन के मैं  बलिहारी हूँ 

 

ज्ञान की देवी सरस्वती,

 माँ गंगा पावन इतनी 

दिव्य शक्ति  प्रतापी है नारी

असुरों के  सँघारी  है 

वीराँगना शौर्य है जितना 

माता  जगतोद्धारि है  !

 

नाज़ है मुझको नारीत्व में 

अपने अस्तित्व को मैंने हैं पहचाना

गलती से भी नाज़ूक न समझना 

शक्ति के स्वरुप हूँ मैं

ईश्वर की अपरम्पार महिमा 

रचनात्मक रूप हूँ मैं 



 

 

 

 

 


 

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