अफ़सानो के पहाड़ जब क़हर लेके आती हैं
ज़िन्दगी का रौनक धुंदली पर जाती है
ऐसे नाज़ुक वक़्त में टूटे हुए दिल को
दुनिया की कोई रीत नहीं जोड़ पाती हैं
दर बदर भटकने पर भी
जब सवालों के जवाब नहीं मिलते
थक के चूड़ होके आख़री पनाह
तब अपनी अंतरात्मा में जा मिलती
ज्ञान चक्षु से हर जहां में रंगत दिखती
शांत स्वरुप सद्चिदानन्द रोम रोम में घुलती
हर कली में जैसे फूल छुपा हैं
प्यार के पंछी हर गली में संग चहकती
क्यों न मिलके हम एक ऐसा जहा बनाये
जिससे विश्व शांति का अनुपम प्रतीक लेहरायें
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